मंत्र
" ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतो-अपि वा !
यः स्मरेत पुन्डरिकाक्षम स बाह्याभ्यंतरः शुचिः !!
इसके बाद उस जल को अपने ऊपर छिरक / छींट लें -- आचार्य रंजन
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