~ रत्न / यंत्र -प्राण-प्रतिष्ठा विधि :
वैसे तो हमारे वेदों में / शाश्त्रों में किसी भी रत्न या यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा की जो विधियां बतायी गयी है वो थोडा सामान्य व्यक्ति हेतु क्लिष्ट सा प्रतीत होती है , परन्तु जहाँ तक मैंने अपने जीवन में अनुभव में पाया है की यदि निचे बताये गए विधि अनुशार भी यदि पूर्ण श्रधा एवं आस्था के साथ अनुकरण किया जाए तो इसके परिणाम में कोई विशेष अंतर नहीं रहता है ! अतः आज जन-कल्याण हेतु यह अति गोपनीय रहश्य का उद्भावना मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ , आशा है की यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगी - सर्वप्रथम , अपने रत्न / यंत्र को लेकर किसी उचाई पर या किसी आसन पर रख लें ! फिर हाथ में जल , अक्षत और पुष्प लेकर निम्न मन्त्र पढ़ें -
ॐ अद्य श्री ब्राह्मणों द्वितीये परार्धे श्रीश्वेत्वाराह्कल्पे वैवस्त्मन्वन्तरे अष्टाविनशतितमें कलियुगे कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखंडे भारतवर्षे बौधावतारे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते पुण्यक्षेत्रे .....................( स्थान का नाम ), ....................( संवत्सर का नाम ) संवत्सरे , ..........................( हिंदी महीने का नाम ) मासे , ........................( शुक्ल / कृष्ण पक्ष का नाम ) पक्षे , .......................( तिथि का नाम ) तिथौ , ....................( वार का नाम जैसे सोमवार इत्यादि ) वासरे मम ............................( अपना नाम ) आत्मनः श्रुतिस्मृति - पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं .....................( यंत्र / रत्न का नाम ) यंत्रस्य / रत्नस्य ताडनावघातादी - दोष्परिहार्थं धूपोतारण पूर्वकं प्राणप्रतिष्ठा करिष्ये !
यह बोलकर किसी पात्र में उन्हें ( इस जल , अक्षत एवं फूल को ) छोड़ दें ! इसके बाद रत्न / यंत्र पर शुद्ध घी लगा दें , फिर दूध और जल मिलाकर उससे स्नान कराएं साथ ही यंत्र / रत्न का इष्ट मन्त्र ( प्रत्येक रत्न के लिए इष्ट मन्त्र हमारे इसी ब्लॉग पर उपलब्ध है ) बोलते रहें !
फिर विनियोग करें ( अर्थात हाथ में सिर्फ जल लेकर निम्न मन्त्र पढ़ कर किसी पात्र में इस जल को छोड़ देना है ) -
ॐ अस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्मा-विष्णु-रुद्रा ऋषयः ऋग्यजुर्सामानी छन्दांसी प्राणशक्तिर्देवता आं बीजं ह्रीं शक्तिः क्रों कीलकं अस्मिन रत्ने / यंत्रे श्री ......................( रत्न या यंत्र का नाम ) प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः !
इसके बाद रत्न / यंत्र को एक हाथ में लेकर तथा दुसरे हाथ में दूर्वा या कुश लेकर निम्न मन्त्र बोलते हुए रत्न / यंत्र पर चलाते रहें ---
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य रत्नस्य / यंत्रस्य श्री .................( रत्न / यंत्र का नाम ) रत्नस्य / यंत्रस्य प्राणा इह प्राणाः !
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य रत्नस्य / यंत्रस्य श्री .................( रत्न / यंत्र का नाम ) रत्नस्य / यंत्रस्य जीव इह स्थितः !
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य रत्नस्य / यंत्रस्य श्री .................( रत्न / यंत्र का नाम ) रत्नस्य / यंत्रस्य सर्वेंद्रियानी वांड-मनस्त्वकचक्षु: श्रोत्रजिह्वा-घ्राण-प्राणा इहागत्य इहैव सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा !
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमन्तनोत्वरिष्टम यज्ञं समिमं दधातु ! विश्वे देवास इह मादयन्ताम ॐ प्रतिष्ठ !!
एष वै प्रतिष्ठा नाम यज्ञो यत्र तेन यज्ञेन यजन्ते ! सर्वमेव प्रतिष्ठितं भवति !!
अस्मिन रत्ने / यंत्रे श्री .................( रत्न / यंत्र का नाम ) रत्ने / यंत्रे यन्त्र देवता / रत्न देवता श्री .............( रत्न / यंत्र देवता का नाम ) सुप्रतिष्ठता वरदा भवन्तु !
फिर गंध , पुष्पादि से पंचोपचार ( स्नान , चन्दन , पुष्प , धूप- दीप , नैवेद्य एवं आरती ) पूजन करें और यंत्र के षोडश संस्कारों की सिद्धि के लिए 16 बार इष्ट मन्त्र का जप करें -
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं ॐ हंसः सोऽहं सोऽहं हंसः शिवः अस्य रत्नस्य / यंत्रस्य श्री .................( रत्न / यंत्र का नाम ) रत्नस्य / यंत्रस्य प्राणा इह प्राणाः !
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं आं ह्रीं क्रों अस्य रत्नस्य / यंत्रस्य श्री .................( रत्न / यंत्र का नाम ) रत्नस्य / यंत्रस्य जीव इह स्थितः ! सर्वेंद्रियानी वांड-मनस्त्वकचक्षु: श्रोत्रजिह्वा-घ्राण-प्राणा इहागत्य इहैव सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा !
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ॐ असुनीते पुनरस्मासु चक्षु : पुनः प्राणमिह नो धेहि भोगम ! ज्योक पश्येम सूर्यमुच्चरन्तमनुमते मृडया नः स्वस्ति !!
फिर -
अस्य रत्नस्य / यंत्रस्य षोडश संस्काराः सम्पद्यन्ताम !!
इस मन्त्र को बोलकर '
यंत्र /
रत्न में प्राण ,
जीव ,
वाणी ,
मन ,
त्वचा ,
नेत्र ,
कर्ण ,
जिह्वा ,
नासिका आदि सभी इन्द्रियां निवास कर रही है और यह यंत्र /
रत्न साक्षात भगवत्स्वरूप हो गया है '
ऐसा मानकर रत्न /
यंत्र
को यदि संभव हो सके तो ***षोडशोपचार पूजन कर लें !
अंत में उस रत्न से सम्बंधित किसी एक मन्त्र का कम से कम 108 बार जाप कर उस रत्न को निर्देशित उंगली या गले में धारण कर लें ! इसके बाद अपने सभी इष्ट देवता , ग्राम देवता , गृह देवता तथा घर में उपस्थित सभी बुजुर्ग को प्रणाम कर आशीर्वाद ग्रहण कर लें !
*** इसकी विधि संभवतः जल्द ही लिखने क प्रयत्न करूंगा वैसे आप किसी नजदीकी ब्रह्मण से संपर्क क्र इसकी जानकारी ले सकते हैं !
नोट : प्राण -
प्रतिष्ठा प्रारंभ करने से पहले पूजन में प्रयोग होने वाले सामग्री का भी जिक्र कर देना मैं उचित समझता हूँ !
सामग्री :
१-
गंगा जल /
शुद्ध ताज़ा जल
२-
अक्षत
३-
पुष्प
४-
दीपक
५-
घी (
गाय का )
६-
धूप /
धूप बत्ती
७-
कच्चा दूध (
गाय का )
८-
दही (
गाय के दूध का )
९-
मधु
१०-
शर्करा
११-
रोली चन्दन ,
सिन्दूर ,
चन्दन
१२-
छोटा सा वस्त्र का टुकड़ा
१३-
आसन (
स्वयं के लिए एवं रत्न /
यंत्र के लिए )
१४-
दुर्वा एवं कुशा
१५-
सुगन्धित द्रव्य (
इत्र )
१६-
बड़ा सा पात्र -
२/
३
१७-
नैवेद्य -
५० ग्राम
१८-
फल -
१/
२
१९-
पान पत्ता -
१
२०-
सुपाड़ी -
१
२१-
कपूर (
आरती के लिए )
( उपरोक्त सामग्री षोडशोपचार पूजन एवं मात्र एक रत्न / यंत्र हेतु है )
* यदि पूजन के दौरान या इसे समझने में कोई दिक्कत हो तो आप हमसे सीधे भी संपर्क कर सकते है या हमें फोन कर सकते है @ +91-9431236090 & +91-9162519713 *
--आचर्य रंजन ( ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु विशेषज्ञ ) @ Begusarai ( Bihar) , Narendrpur ( Kolkata ) , Dwarka ( New Delhi )